Monday, May 11, 2020

कैसे 125 रुपये महीने की पगार से 250 करोड़ का साम्राज्य स्थापित हुआ


आपकी आज की परिस्थितियां आपके भविष्य को निर्धारित नहीं करती है। आपके इरादे और आपका काम ही आपके आने वाले जिंदगी के आधार होते हैं। हमारी कहानियां वह रास्ता है जिसके द्वारा हम आपको आपके लक्ष्य को ऊँचा करने के लिए प्रेरित करते हैं। आज की कहानी उस व्यक्ति की कहानी है जिसने अपने सामने आए कठिन बाधाओं को पार कर अपना नाम बनाया और सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि हजारों लोगों को धन अर्जित करने का मौका दिया। शुरुआत इन्होने शून्य से की और करोड़ों रुपयों का साम्राज्य खड़ा किया। चीथड़े से महलों तक की इस कहानी का राज उनके कठिन श्रम के साथ बड़े-बड़े रिस्क उठाने की क्षमता ही है। साल 1954 में राजस्थान के सीकर जिले के बालरा गांव में जन्में देवीदत्त गुर्जर का बचपन गरीबी में व्यतीत हुआ। उनकी परिस्थितयों ने ही उन्हें अपने और अपने परिवार के लिए कुछ कर गुजरने का साहस दिया। जैसे ही उन्होंने अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की, वैसे ही वे अपनी नौकरी ढूंढने के लिए मुंबई निकल पड़े।  

जब बच्चे घर से बाहर जाते हैं तब माता-पिता उनका सामान बांधते हैं और हाथ में अच्छा-खासा बैंक बैलेंस रख देते हैं लेकिन इस युवा देवीदत्त के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनके पास केवल उतने ही रूपये थे जितने में वे मुंबई पहुँच पाये। देवीदत्त ने बिना किसी मदद और बिना पहचान के मुंबई जैसे बड़े शहर में जीवन के लिए अपनी जद्दोजहद शुरू की। वे एक जगह से दूसरे जगह नौकरी की तलाश में भटकते रहे पर उन्हें सफलता नहीं मिली। कोशिशें  लगातार चलती रहीं, कई दिनों तक उन्हें भूखा भी रहना पड़ा पर उनके पास सुस्ताने और रुकने का समय ही नहीं था। बहुत कोशिशों के बाद आखिर उन्हें एक ट्रांसपोर्ट एजेंसी में 125 रूपये महीने पगार की नौकरी मिली।
देवीदत्त को पैसों से मतलब नहीं था, उनका पूरा ध्यान बिज़नेस के गुर सीखने में था। वे एक ईमानदार कर्मचारी थे उन्होंने अपना शत-प्रतिशत अपनी कंपनी को दिया और अपने मालिकों का दिल जीत लिया। समय बीतता गया और सात साल के बाद उनकी एजेंसी की एक ब्रांच हैदराबाद में खुली और वहाँ उन्हें मुखिया के रूप में पदस्थ करने की पेशकश की। उन्होंने इस अवसर को मान दिया और पूरे लगन के साथ उसे अपनाया।


इन सात सालों में उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के लिए कभी रूपये नहीं भेजे। वे एक छोटे से, अँधेरे और 10×10 के कमरे में रहते थे, वहीं खाना बनाते और दूसरे कर्मचारियों के साथ वहीं सो जाते। परन्तु पांच साल की इस कठिन जिंदगी के बाद उनकी कंपनी दो भाग में विभाजित हो गई। उनके मालिक ने पेशकश की कि वे कुछ पैसे देकर एक ट्रक ले लें।  परन्तु इसके बाद उन्हें एक बड़ा झटका लगा, उनकी ट्रक का एक्सीडेंट हो गया। उनकी पूरी बचत 1.5 लाख रूपये ट्रक के नुकसान भरने में चली गयी और वे फिर से शून्य पर आकर खड़े हो गए। 

 देवीदत्त फिर से नौकरी ढूंढने शुरू कर दिए। इस समय उन्होंने अपनी बचत से और एक पार्टनर के साथ मिलकर एक ट्रक ख़रीद लिया। वे दोनों मिलकर अपना बिज़नेस खड़ा करने के लिए दर-बदर घूमने लगे। उनकी कड़ी मेहनत काम आई और कुछ साल के बाद उनका बिज़नेस फलने -फूलने लगा।  

1989 में उनके पार्टनर उनसे अलग हो गए, तब देवीदत्त ने ‘पायोनियर रोड कैरियर लोजिस्टिक्स’ की नींव रखी। आज उनके पास गवर्नमेंट और सेमी-गवर्नमेंट के दर्जन भर कॉन्ट्रैक्ट्स हैं। उनकी कंपनी ने 750 टैंकर्स, कंटेनर्स और दूसरे ट्रांसपोर्ट वाहन ख़रीदे जो देश भर में काम आ रहे हैं। उनकी कंपनी अपने 22 ब्रांचेस के साथ पूरे देश में फैले हुए हैं और लगभग 3500 कर्मचारी उसमें काम करते हैं। उनकी कंपनी का लाभ हर साल बढ़ रहा है और उनकी कंपनी का वार्षिक टर्न-ओवर 250 करोड़ रूपये है। 



 कम शिक्षा और गरीब परिवार के होने के बावजूद देवीदत्त ने यह दिखा दिया कि कड़ी मेहनत के बल पर आप अपने सपनों को सच कर सकते हैं और अविश्वसनीय ऊंचाइयों को छू सकते हैं। उन्हें कोई दिशा दिखाने वाला भी नहीं था और न ही कोई मददगार। उन्होंने शुरुआत शून्य से की और एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर हजारों लोगों के लिए प्रकाश स्तंभ बन गए।  

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