Monday, May 11, 2020

एक बैंक चपरासी जिसने उसी बैंक का प्रमुख बनकर पेश की सफलता की अनूठी मिसाल



एक चपरासी से बॉस बनने की यह कहानी अपने आप में अनूठी है। ऐसी कहानियां प्रायः फिल्मों में देखने को मिलती या फिर किताबों में किसी कहानी के रूप में। लेकिन हमारे बीच कुछ लोग हैं जो अपनी दृढ़-इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम की बदौलत इसे असल जिंदगी में भी कर दिखाया है। आज ही कहानी एक ऐसे ही शख़्स के सफलता को समर्पित है, जो कभी दो जून की रोटी के लिए चपरासी के रूप में काम करने को विवश हुए लेकिन फिर मेहनत कर ऐसा मुक़ाम हासिल किया कि आज औरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए।

सफलता की यह कहानी डॉ राजू एल भाटिया की है जो एक परिवर्तन प्रबंधन और मानव संसाधन विशेषज्ञ के रूप में प्रसिद्धी हासिल की। इतना ही नहीं इन्हें ही टाटा कंपनियों के लिए टाटा मानव संसाधन विकास नेटवर्क डिज़ाइन करने का भी श्रेय जाता है। ‘मानव संसाधन गुरु’ के नाम से प्रसिद्ध राजू भाटिया का जीवन असंभव को संभव बनाने में एक सबक है।

मुंबई के बेहद ही गरीब परिवार में जन्में भाटिया के पिता घर-घर सामान बेचने का धंधा किया करते थे। उनकी मासिक आय इतनी कम थी कि किसी तरह परिवार को दो जून की रोटी नसीब हो पाती थी। परिवार की कमजोर आर्थिक हालत की वजह से भाटिया को अपनी स्कूली शिक्षा के लिए भी एक बहुत संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने किसी तरह एक सरकारी स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। अंत में, 15 वर्ष की आयु में भाटिया ने ख़ुद को जीवित रखने और अपने परिवार का समर्थन करने के लिए एक बैंक में चपरासी की नौकरी कर ली। 
 भाटिया को बचपन से ही शिक्षा के महत्व के बारे में पता था इसलिए उन्होंने बैंक में काम करने से साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखा। वे सुबह 7 बजे से 10 बजे तक कॉलेज में भाग लेते, फिर 6 बजे तक बैंक में काम करते और उसके बाद कुछ बच्चों को ट्यूशन दिया करते थे।  

स्नातक स्तर की पढ़ाई में उन्होंने वाणिज्य धारा में बॉम्बे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया और प्रबंधन की पढ़ाई के लिए प्रतिष्ठित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में सफलतापूर्वक दाख़िला लिया।

 आईआईएम में एक बहुत अच्छा छात्र होने की वजह से उन्हें छात्रवृत्ति मिली और फिर उन्होंने मिसौरी विश्वविद्यालय से मानव संसाधन में अपनी पीएचडी करने के लिए चले गए। पीएचडी के सफल समापन के बाद उन्होंने 1988 में टाटा निर्यात में अपने कैरियर की शुरुआत की।  

करीब एक दशक तक टाटा ग्रुप के साथ काम करते हुए भाटिया ने सभी टाटा कंपनियों के लिए टाटा-एचआरडी नेटवर्क का सूत्रधार किया। उसके बाद उन्होंने मानव संसाधन के प्रमुख के रूप में उसी बैंक में शामिल हुए, जहाँ कभी चपरासी का काम किया करते थे। भाटिया ने भी 1998 में एक मानव संसाधन परामर्श फर्म की स्थापना करने से पहले दो बहुराष्ट्रीय वित्तीय फर्म अर्न्स्ट एंड यंग और मैकेंजी के साथ जुड़े थे।
आज, भाटिया एक प्रसिद्ध कंपनी सलाहकार, कई प्रसिद्ध किताबों के लेखक और व्याख्याता हैं। इसके अलावा वे ‘सेंटर फॉर चेंज मैनेजमेंट’ के संस्थापक भी हैं।

एक आदमी जो कभी एक बैंक चपरासी के रूप में झूठे कप धोने के लिए मजबूर किया गया था। बाद में वही शख्स मानव संसाधन के प्रमुख के रूप में उसी बैंक में शामिल हुए। इसे ही असली सफलता कहा जाता है। 




डॉ भाटिया का युवाओं के लिए सफलता मंत्र: हमें यह अच्छी तरह मालूम होना चाहिए की हम क्या कर रहें हैं और वही करना चाहिए जो हमें मालूम हो और निश्चित रूप से हमें अपने सपनों को कभी दबने नहीं देना चाहिए !

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