Monday, May 11, 2020

50 रुपये में गुजारा करने वाले किसान के इस बेटे ने कुछ यूँ बनाया 3300 करोड़ का नामचीन ब्रांड

तमिलनाडु के कोइम्बटूर के पास एक गरीब किसान परिवार में जन्में इस व्यक्ति के बारे में किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन उनकी गिनती देश के सबसे सफल उद्योगपतियों की सूची में शुमार होगी। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं डॉ. वेलुमनी अरोक्यास्वामी के बारे में।

पिता की हालत इतनी खराब थी कि उन्होंने घर की जिम्मेदारी तक से हाथ धो लिया था। उस घर की जिम्मेदारी जिसमें उनकी पत्नी सहित इनके 4 बच्चे भी थे। इस बुरे वक्त में मां ने घर की कमान थामी। उन्होंने दो भैंसे खरीदे और उससे दूध निकालकर बेचने लगीं। इन दो भैंसों से उन्हें हफ्ते के 50 रुपये मिल जाते थे और इन्हीं रुपयों की बदौलत उन्होंने 10 साल तक अपने घर को चलाया। कई वर्षों तक इसी तरह गुज़र-बसर करने के बाद डॉ. वेलुमनी को कॉलेज की पढ़ाई के लिए घर छोड़ना था।

19 साल की उम्र में उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया। अब उनके सामने नौकरी पाने की चुनौती थी। लेकिन ये वो वक्त था जब लोगों को नौकरी के लिए जानकारी से ज्यादा अंग्रेजी की समझ जरूरी हुआ करती थी और साथ ही साथ हर किसी को एक अनुभवी कामगार की तलाश होती थी। नौकरी नहीं मिल रही थी अंत में कोइम्बटूर में ही एक कंपनी में केमिस्ट के तौर पर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। वहां उन्हें महीने के 150 रुपए मिला करते थे।

उन 150 में से वेलुमनी 100 रुपए अपने घर भेज दिया करते थे क्योंकि उन्हें अपनी मां की मेहनत और मजबूरी का इल्म था।
दुर्भाग्य से वेलुमनी जिस कंपनी के लिए काम कर रहे थे वो कंपनी भी बंद होने के कगार पर ही थी। बंद होने के ठीक 1 महीने पहले उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में नौकरी के लिए आवेदन दिया। अर्जी मान ली गई और उन्हें काम मिल गया।

वहां उन्हें महीने के 800 रुपए मिलते थे। लेकिन वेलुमनी इससे पहले जहां काम करते थे वहां इतना काम कर चुके थे कि उन्हें यहां का वर्क लोड कम ही लगता था। उन्होंने अपनी उर्जा को दूसरे दिशा में लगाया और वहीं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। इससे उन्हें 800 रुपए की अतिरिक्त कमाई होने लगी, इस पूरे 1600 में से भी वो 1200 अपनी मां को भेज दिया करते थे। उन्होंने अपनी मां से झूठ कहा था कि उन्हें 2000 रुपए की नौकरी मिली है ताकि दूर रह कर इतने कम पैसे की नौकरी करने से वह मना न कर दें।

 यह सब कुछ 15 सालों तक चला। अब तक वेलुमनी ने अपनी पीएचडी की डिग्री पूरी कर ली। अब वो डॉ. वेलुमनी हो गए थे। अपने पीएचडी के दौरान उन्हें समझ आ गया था कि थायरॉइड के फील्ड में टेस्ट करके लोग बहुत पैसे कमा रहे हैं तो फिर मैं क्यों नहीं कमा सकता।

साल 1995 की एक रात उन्होंने अपनी नौकरी से रिजाइन मार दिया और अपने 1 लाख रुपए जमा प्रोविडेंट फंड के पैसे से उन्होंने मुंबई में ही एक टेस्टिंग लैब बनाया।
 थायरॉइड के लैब का काम बढ़ाते हुए उन्होंने देशभर के अलग-अलग हिस्सों में पहले सिर्फ सैंपल लैब खोले और इसकी टेस्टिंग मुंबई के सेंट्रल सेंटर में किया जाता था।

साल 2011, में नई दिल्ली की कंपनी सीएक्स-पार्टनर्स ने थायरोकेयर में 30% स्टेक खरीद लिया। जिसकी कीमत लगाई गई तकरीबन 188 करोड़ रुपए और कंपनी की पूरी वैल्यू बनी 600 करोड़ रुपए। इसके बाद एक के बाद एक दूसरे इन्वेस्टर्स ने भी कंपनी में अपने पैसे निवेश करने शुरू किए। 
 आज की तारीख में थायरोकेयर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों की कंपनी है और डॉ. अरोक्यास्वामी वेलुमनी की संपत्ति तकरीबन 3300 करोड़ से भी ज्यादा की है। याद रहे ये वही आदमी है जिसके घर की पूर कमाई एक वक्त पर हफ्ते का 50 रुपया हुआ करता था। 

 उनकी कहानी वाक़ई में प्रेरणा से भरी है। उन्होंने साबित कर दिखाया है कि कठिन मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। 







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