Monday, May 11, 2020

नुकसान के बाद भी नहीं हारा यह किसान, आज बिना मिट्टी की खेती कर महीने के लाखों कमाता है



कहा जाता है किसान मिट्टी में सोना भी उगा देने का माद्दा रखते हैं। आखिर हो भी क्यों ना, इतनी मेहनत और खून-पसीनें से उगाई गयी फसल किसी सोने से कम तो होती भी नहीं। लेकिन आज के परिवेश में किसानों को इस सोने रूपी फसल को उगाने के लिए मिट्टी की भी जरुरत नहीं पड़ती। आज तरह-तरह के आधुनिक तकनीक की खेती से बिना मिट्टी की खेती संभव है। सिर्फ संभव ही नहीं वल्कि यह अच्छी पैदावार के साथ जबरदस्त मुनाफा भी देता है। अब आधुनिक तकनीक के आने से किसानों का मिट्टी की गुणवत्ता और जलवायु पर से निर्भरता खत्म हो गयी है। 
 बढ़ते शहरीकरण के कारण खेती योग्य जमीनों की संख्या भी लगातार कम हो रही है। लेकिन अब बिना मिट्टी के खेती की तकनीक से इन सभी समस्याओं का हल संभव है। आज किसान हाइड्रोपोनिक तकनीक, कोको पिट तकनीक द्वारा मिट्टी व पोली हाउस तकनीक द्वारा मौसम से अपनी निर्भरता खत्म कर रहे हैं। आज हम एक ऐसे ही किसान की बात कर रहे हैं जिसनें अपनी सोच और बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल कर खेती को मुनाफे से सौदे में तब्दील कर दिया।  

इनका नाम है नंदलाल दांगी। नंदलाल राजस्थान जिला उदयपुर के महाराज खेड़ी गांव के रहनें वाले हैं। नंदलाल आज बिना मिट्टी की खेती कर सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। मिट्टी रहित कोको पीट तकनीक तथा पॉली हाउस तकनीक द्वारा खेती कर नंदलाल बम्पर पैदावार कर रहे है। उन्होंने साल 2013 में अपनी पत्नी और भाई के नाम राजकीय सहायता प्राप्त कर करीबन आठ हजार वर्गमीटर दो एकड़ भूमि पर संरक्षित खेती के लिए तीन पॉली हाउस में खीरा, टमाटर व शिमला मिर्च की खेती शुरू की। कुछ समय बाद ही टमाटर व खीरा की नई फसल भूमि सूत्र कृमि से बुरी तरह प्रभावित हो गयी। इससे नंदलाल की बहुत फसल भी बर्बाद हो गयी थी और उन्हें नुकसान भी हुआ। 
 नंदलाल मिट्टी की गुणवत्ता से परेसान थे पर जल्द ही उनको इसका हल मिल गया। उन्हें पता चला कि कोकोपीट विधि द्वारा खेती करने से सूत्र कृमि की समस्या नहीं आती। नंदलाल ने अपने पड़ोसी राज्य गुजरात के एक कृषि सलाहकार की मदद लेकर मृदा के स्थान पर कोकोपीट के उपयोग का पूरा ज्ञान हासिल किया। इस आईडिया की शुरूआत 2013 में हुई जब नंदलाल गुजरात गए हुए थे। इस दौरान उन्हें इजरायली तकनीक के बारे में जाना। गुजरात के साबरकांठा में हिम्मतनगर नगर निकाय में उन्होंने देखा कि एशियन एग्रो कंपनी सब्जियों का उत्पादन कोको पीट में कर रही है। कोको पीट नारियल की भुसी से तैयार हुई मिट्टी जैसे तत्व को कहते हैं पर ये मिट्टी नहीं होती।  

उसके बाद उन्होंने नारियल के बुरादे का उपयोग करते हुए मिट्टी रहित खेती का तरीका शुरू किया। नंदलाल ने कोकोपीट को 5-5 किलोग्राम की प्लास्टिक की थैलियों में भरकर कुल 13,000 थैलियों में बीजारोपण कर एक एकड़ पॉली हास क्षेत्र में खीरे की खेती आरम्भ की। इस विधि में पौधों की गुणवत्ता बरक़रार रखने व इसे पोषक देने के लिए इन्हें पूर्ण रूप से फर्टिगेशन विधि द्वारा बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली से किया जाता है। नन्दलाल नें  विभिन्न प्रकार के सॉल्ट की व्यवस्था की ताकि पौधों को सभी 16 तत्वों से पोषित किया जा सके। बुआई के करीब 45 दिन बाद फूल आने लगे व खीरे लगने लगे। नंदलाल की यह खीरे की फसल पूर्ण रूप से गुणवत्तापूर्ण व सूत्र कृमि प्रकोप रहित थी। 

 पहले जहाँ वे अपनी दो एकड़ जमीन पर सालभर में मुश्किल से मात्र 20 टन खीरा उगा पाते थे। मिट्टी रहित कोको पीट खेती की तकनीक ने उनकी तकदीर ही बदल दी और उनकी उपज चार गुना बढ़कर 80 टन सालाना हो गई। किसान नंदलाल के फसल की पैदावार में आई बढ़ोतरी के कारण उनकी वार्षिक आय बहुत बढ़ी है। अपनी सफलता को देखते हुए उन्होंने अब तुर्की की एक उत्तम खीरे की प्रजाति युक्सकेल 53321 हाइब्रिड का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। अब आलम यह है कि नन्दलाल के 4000 वर्गमीटर पॉली हाउस से करीब 450 क्विंटल खीरा उत्पादन हो रहा है। जिसे साधारण बाजार भाव पर भी बाजार में बेचा जाये तो उन्हें प्रति माह एक लाख रुपए से अधिक शुद्ध मुनाफा मिल रहा है। पर उनके फसल की क्वालिटी देख कर उन्हें साधारण से अधिक ही दाम मिल रहा है।  

नंदलाल ना केवल किसानों के लिए एक प्रेरणा हैं बल्कि उनलोगों के लिए भी एक प्रेरणा हैं जो एक बार गिरकर ही हार मान लेते हैं। नंदलाल नें एक बार फसल का नुकसान होने के बाद भी हौसला नहीं हारा और नई तकनीक सीख कर सफल हुए व अपनें हौसले से नई मिसाल कायम की।



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